क्या आपको कभी लड़की होने का दुख हुआ है? यदि हां! तो ऐसी घटना का जिक्र करते हुए एक पत्र लिखें।
विकास नगर, रोड संख्या .05
पटना - 8000xx
20 सितंबर, 2020
बहुत दिनों के बाद तुम्हारा पत्र मिला पत्र पढ़कर अत्यधिक प्रसन्नता हुई कि तुम आनंदित हो और परिवार में भी सभी कुशल मंगल है। प्रिय मनीषा, तुम तो यह बात अच्छी तरह से जानती हो कि मेरे माता-पिता पुराने ख्यालों और संकुचित विचारों वाले हैं। उनके विचारों के अनुसार उनका यह मानना है कि लड़कियों को लड़कों की तुलना में अधिक पढ़ना-लिखना नहीं चाहिए। घर में जरा सा ऊंची आवाज में बोल दिया या फिर हंसी मजाक कर दिया तो घर में तूफान मच जाता है।
मैं उस दिन की घटना भूल नहीं सकती! उस दिन के बारे में सोच कर मुझे आज भी मन अत्यधिक विचलित हो उठता है। उस दिन बहुत छोटी सी बात थी। उस दिन मेरा छोटा भाई स्कूल से आने के बाद खाना खाने में आनाकानी कर रहा था। वह इतना जिद्दी हो गया, कि किसी की बात नहीं मान रहा था। जब मैंने उसे हल्के से डांटा, तो फिर क्या था! मेरी मां मुझ पर ही बरस गई और और दो थप्पड़ की बरसात कर दिया। मैं दिन भर अकेली अपने कमरे में रोती रही। कोई खाना खाने तब पूछने वाला नहीं था कि कुछ खाया पिया है या फिर नहीं? शाम में जब पिताजी ऑफिस से घर आए तो मुझे प्यार से समझाया, तो मुझे राहत मिली। मेरे पिताजी मुझसे अवश्य प्यार करते हैं। रात के खाने के समय जब मैंने थोड़ी सी पनीर मांग लिया तो मुझ पर ढेर सारी बातों की बरसात आ गई। मेरी मां बार-बार यही रट लगा रही थी कि मेरा मुन्ना "राजा बेटा" है "बुढ़ापे का सहारा" है। बेटी तो सर की बोझ होती है। बेटी को तो घर छोड़कर एक दिन जाना ही है।
तुम्हारी सहेली
आशा