भारत जैसे विविधताओं वाले देश में प्रत्येक त्योहारों का अपना एक अलग महत्व होता है, प्रत्येक त्यौहारों को उनसे संबंधित धर्मों के लोग बड़ी धूमधाम तथा हर्ष - उल्लास के साथ मनाते हैं। ठीक इसी तरह आज धनतेरस का यह त्यौहार सभी भारतवर्ष के लोगों को हर्ष - उल्लास से भर देता है। क्योंकि धनतेरस के इस त्योहार पर लोग समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। धनतेरस शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों से मिलकर हुई है, - 'धन' तथा 'तेरास'। जिसमें 'धन' का अर्थ 'संपत्ति' होता है तथा 'तेरास' का अर्थ कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष के तेरहवें चाँद का दिन। इसी दिन धनतेरस त्योहार मनाया जाता है। धनतेरस को ‘धनत्रियोदशी’ और 'धन्वंतरी त्रियोदशी' भी कहते हैं।
यह त्यौहार दीपावली से दो दिन पूर्व मनाया जाता है। धनतेरस के दिन अधिकांश लोग सोने - चांदी से बने आभूषण अथवा बर्तन खरीदते हैं। छोटा हो या बड़ा, अमीर हो या गरीब, सभी इस दिन कुछ ना कुछ जरूर खरीदते हैं। क्योंकि इस दिन सोने - चांदी से बने आभूषण अथवा बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। लेकिन क्यों? ऐसी कौन सी वजह है जिसके कारण लोग इस दिन सोने चांदी से बने आभूषण अथवा बर्तन खरीदना शुभ समझते हैं।
धनतेरस त्यौहार क्यों मनाया जाता है? धनतेरस क्यों मनाया जाता है? धनतेरस मनाने का कारण क्या है? धनतेरस त्यौहार मनाने का कारण?
वैसे को धनतेरस मनाने के कई कारण हैं। लेकिन आज के लेख में मैं एक महत्वपूर्ण कारण के बारे में बात करूंगा। प्राचीन कथाओं के अनुसार धनतेरस त्यौहार मनाने के एक महत्वपूर्ण कारणों में से एक यह है कि एक बार देवताओं और असुरों के बीच समुद्री लड़ाई हुई थी। लड़ाई इतनी गंभीर हो गई थी कि उसका कोई अंतिम परिणाम नहीं निकला। तब देवताओं और असुरों के बीच एक समझौता हुआ इस समझौते के तहत समुद्र मंथन की जाने की बात कही गई।
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जिसमें समुद्र मंथन के पश्चात जो भी वस्तु निकलता उसे असुरों एवं देवताओं में आपस में समान रूप से बांट लिया जाने का तय किया गया था। इस तरह समुद्र मंथन के दौरान हीरे जवाहरात और अनेकों रत्न निकले। समुद्र मंथन के पश्चात कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरी अपने हाथों में अमृत के कलश लेकर प्रकट हुए। जिसके कारण धनतेरस के दिन लोगों में बर्तन व सोने चांदी से बने आभूषणों को खरीदने की परंपरा शुरू हुई। इस दिन सोने चांदी से बने आभूषण बर्तनों को खरीदने से ही घर में धन-संपत्ति की वृद्धि होती है। वास्तव में देखा जाए तो भगवान धन्वंतरी, भगवान विष्णु के ही अवतार थे। तथा भगवान विष्णु ने अमृत कलश के लिए ही समुंद्र मंथन की शर्त रखी थी।
इसके अतिरिक्त मान्यताओं के अनुसार समुंद्र मंथन के दौरान ही माता लक्ष्मी समुंद्र से प्रकट हुई थी। जिसके कारण धनतेरस के ठीक 2 दिन बाद दीपावली के दिन लक्ष्मी जी की भी पूजा की जाती है। वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार इसी दिन माता पार्वती, शिव जी से पासे में जीत हासिल की थी। जिसके कारण दीपावली के दिन पासे का खेल भी खेला जाता है।
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निष्कर्ष : त्योहार चाहे किसी भी धर्म का हो यह खुशियां लेकर आती है। इसी कारण आप भी चाहे किसी धर्म के हो हर त्योहारों में छोटी-छोटी खुशियां ढूंढ कर हर त्यौहार मनाने की कोशिश करें, तथा सामाजिक सौहार्द भी बनाए रखें। जिससे समाज में आपकी प्रतिष्ठा बनी रहेगी।
दीपावली और छठ महापर्व की ढेर सारी शुभकामनाएं 🙏
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