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"अधजल गगरी छलकत जाए" मुहावरे का अर्थ क्या है? "अधजल गगरी छलकत जाए" कहावत का अर्थ क्या होता है

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Adhjal gagri chalkat Jaye kahavat ka Arth kya hai

"अधजल गगरी छलकत जाए" इस कहावत को आपने कई बार सुना होगा या फिर अपने किताबों में पढ़ा होगा। लेकिन मेरा यह सवाल है कि क्या आपको इस कहावत का अर्थ पता है? यदि नहीं! तो कोई बात नहीं! क्योंकि इस लेख में आप "अधजल गगरी छलकत जाए" कहावत का अर्थ समझ जाएंगे। साथ ही साथ मैं आपको इस कहावत की भावार्थ की उदाहरण भी आपको बताऊंगा, ताकि आप इसे और भी अच्छी तरीके से समझ पाए।

"अधजल गगरी छलकत जाए" कहावत का अर्थ क्या है | "अधजल गगरी छलकत जाय" कहावत का भावार्थ क्या है?


चलिए इसे समझने की कोशिश करते हैं! "अधजल गगरी छलकत जाए" का अर्थ है - " जिनका ज्ञान अधूरा होता है वही पूर्ण ज्ञानी होने का ढोंग करता है। अर्थात जो अल्पज्ञ है वही पूर्णज्ञ होने का दावा करता है। जल से भरा हुआ एक घड़ा, छलकता नहीं है आधा भरा हुआ घड़ा ही छलकता है। जिसमें पूर्णत्व होता है वह अपनी पूर्णता का ढोल कभी नहीं पीटता है, बल्कि लोग स्वयं ही उसकी पूर्णत्व का लोहा मानने लगते हैं। इस कहावत यानी "अधजल गगरी छलकत जाए" कहावत के समक्ष आमतौर पर है यह भी कहावत कहा जाता है - 'थोथा चना बाजे घना'। इस कहावत का अर्थ भी आप ऊपर बताए गए अर्थ से समझ सकते हैं।



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अल्पज्ञ कभी विनयशील हो नहीं सकता है। इस दोष में उसकी कोई भी गलती नहीं है बल्कि दोस्त उनकी अल्पज्ञता होता है। ज्ञान का भंडार बहुत विशाल होता है। आज शेक्सपियर जैसे महान विद्वान को कौन नहीं जानता है। उन्हें यह कहना पड़ा था कि "ज्ञान के विशाल सागर के किनारे बैठ कर मैं सिर्फ कंकर ही चुनता रह गया, उस में गोते नहीं लगा सका।" इस वाक्य से हम भलीभांति समझ सकते हैं कि विद्वान अपनी विद्वता का प्रदर्शन कभी भी नहीं करता है। उसका प्रदर्शन से वही करते हैं जो शुद्रबुद्धि के होते हैं। विशाल सागर में बाढ़ कभी भी नहीं आती है लेकिन, थोड़े जल की वृद्धि से छोटी-छोटी नदियां उठने लगती है। इसलिए कहा गया है कि "अधजल गगरी छलकत जाए"


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