हम सभी जानते हैं कि भारत में अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों से संबंधित है एवं ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले अधिकांश लोग कृषि कार्य में संलग्न रहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों का वातावरण शहरी जीवन के वातावरण से काफी शुद्ध होता है। खेतों में लहराते हरियाली, बहती हुई नदियां, झरने तथा सुंदर बाग-बगीचों से प्रकृति की सुंदरता का पता चलता है।
लेकिन, ग्रामीण लोग रोजगार प्राप्त करने तथा अपने बच्चों की उच्चतम शिक्षा, स्वास्थ्य एवं भविष्य की चिंताओं के कारण शहरों की ओर पलायन करते हैं। जो काफी अच्छी बात है।
इसलिए आज की इस लेख में हम ग्रामीण क्षेत्रों के जीवन तथा शहरी क्षेत्र के जीवन के बीच सकारात्मक अंतर पर हमने एक संक्षिप्त निबंध लिखने का प्रयास किया है। जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों के जीवन पर तथा उन पर पड़ने वाले प्रभावों पर अधिक बल दिया गया है।
निबंध - शहरी जीवन
भारत की जनसंख्या लगभग 131 करोड़ है। जिसमें भारत की कुल ग्रामीण जनसंख्या की आबादी लगभग 70% के बराबर है। इसलिए भारत को गांवों का देश भी कहा जाता है। भारत में 30% लोग ही शहरों में रहते हैं, किंतु शहरी जीवन की चमक-दमक ग्रामीणों को शहर में जाकर बसने के लिए प्रेरित करती है। व्यवसाय तथा रोजी-रोटी की तलाश में लोग गांव से शहरों की ओर पलायन होता है तथा प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में ग्रामीणजन शहरों की ओर पलायन करते हैं।
गांव के लोग अपने बच्चों की उच्चतम शिक्षा, स्वास्थ्य एवं भविष्य की चिंताएं उन्हें गांव से शहरों की ओर पलायन करने के लिए प्रेरित करती है। जो उनके भविष्य के लिए उपयोगी साबित होती है, लेकिन शहरी जीवन की यह ऊपरी चमक - धमक ग्रामीण लोगों के बिल्कुल रास नहीं आती। शहरी जीवन के मॉर्डन तौर-तरीके भले ही आधुनिक युग के बच्चों के लिए सही है, लेकिन इसके विपरीत ग्रामीण बुजुर्गों को मॉर्डन तौर-तरीके बिल्कुल पसंद नहीं आते। ग्रामीण क्षेत्र के लोगों में आपसी प्रेम, अपनापन एवं एकता भरपूर होती है। लेकिन पारस्परिक सद्भाव एवं ग्रामीण परिवार की अवधारणा शहर में दिखाई नहीं देती है।
ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में रहने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं मिल पाता है और ना ही खेलकूद कि वे सुविधाएं मिल पाती हैं जो गांव में उपलब्ध होती है। गांव में लहराती खेतों की हरियाली, सुंदर बाग-बगीचा की शुद्ध हवा और नदी-नहर का स्नान करना उनके लिए दुश्वार हो जाता है। शहरों में मिलने वाले फास्ट फूड जिसे खाने के बाद एक-दो दिन में ही मन भर जाता है। शहरों में सबसे बड़ा अभाव - अपनेपन की भावना का ना होना है। यहां सभी लोग खुद के कामों में इतने व्यस्त होते हैं कि उन्हें, किसी और के दुख, दर्द या भावनाओं को समझने का मौका ही नहीं मिलता। काम-धंधे के बाद जो थोड़ा सा समय मिलता है, उसमें वे अपने परिवार के साथ कमरों में टीवी देखते हुए बिता देते हैं। इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी ने समाज से अपनापन, भावनात्मक संबंध और सामाजिकता को समाप्त कर दिया है। सच कहा जाए तो काफी हद तक पैसे वालों को ही शहरी जीवन रास आता है।
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